पहचान
देश से हम, हमसे देश
अंतर्राष्टीय हिंदी त्रैमासिक पत्रिका
- समस्त ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही होना चाहिए - महात्मा गांधी समस्त ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही होना चाहिए - महात्मा गांधी समस्त ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही होना चाहिए - महात्मा गांधी समस्त ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही होना चाहिए - महात्मा गांधी समस्त ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही होना चाहिए - महात्मा गांधी
Latest Edition
अप्रैल – जून 2024
अंक में हैं-
इस अंक में हैं- लोक पर्वों पर आलेख- गणगौर: महिमा सोनी, सोहराय- पशुओं के प्रति आभार प्रकट करने का त्योहार: सुजाता कुमारी, बसंत का पहला दिन है नवरोज़: शोभा भारद्वाज, सतुआन: ध्रुव नारायण गुप्त, रक्कस बाबा: रजनी अरजरिया, बुंदेलखंड का नौरता: वंदना अवस्थी दुबे, पुतरी पूजन: प्रवीणा त्रिपाठी, हरछठ: शरद कोकास, कविताएं – छठ: ओम राजपूत, सावन के मायने: सुनील श्रीवास्तव, देव उठ गए: मधु सक्सेना, ईशरा ! अंदर आओ: सुभाष तराण, व्यक्तित्व- बुंदेली के महाकवि ईसुरी को कैसे पढ़ें: डॉ. के.बी.एल. पांडेय, बाल पहेलियां: डॉ. कमलेन्द्र कुमार, पुस्तक समीक्षाएं और फिल्म जानकारी.
Preeta Vyas
Chief Editor
About Pehachaan
अए मेरे वतन मेरी आन है तू
मेरा मान है तू, मेरी शान है तू
मैं जहां में चाहे जहां रहूं
मेरी जान है तू, पहचान है तू.
एक समंदर, तीन समंदर, सात समंदर, कितने ही समंदर लांघ के कहीं भी जा बसें, प्रवासियों के दिल में अपना वतन हमेशां धड़कता रहता है. उस धड़कन को जारी रखने का जतन है -“पहचान”.
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विशेष पठनीय /
Special Read
ज्ञान ही शक्ति है
– लोकेश शर्मा
“ज्ञान स्वयं एक शक्ति है.” नि:संदेह शक्ति के लिए ज्ञान आवश्यक है, शक्ति ज्ञान की महत्ता को रेखांकित करता है. वस्तुतः ज्ञान तो ईश्वर का प्रकाश है. इससे ज्यादा शक्तिशाली और कुछ हो भी नहीं सकता. यह वह प्रकाश है जो हमारे पथ को प्रशस्त्र कर हमें प्रगति के द्वार तक ले जाता है. यह वह शक्ति है जो हमें आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है तथा हमारे गौरव को बढ़ाती है.
चाणक्य नीति में कहा गया है कि मनुष्य में ज्ञान विशेष रूप से अधिक होता है. ज्ञान रहित मनुष्य पशु के समान होता है. ज्ञान से न केवल श्रेष्ठ संस्कार मिलते हैं, बल्कि मानवता को समृद्ध और शक्तिशाली सूत्र भी इसी से मिलते हैं. कहा जाता है कि ज्ञान को सदैव मानवीय हितों से जोड़कर देखा जाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने कहा है ज्ञान वह ही सिद्ध जिससे मानव का हित होता है. कहने का मतलब ज्ञान रूपी शक्ति का सकारात्मक प्रयोग ही करें.
न्यूज़ीलैंड कनैक्शन / New Zeland Connection
जीलैंडिया कैसे बना और क्यों डूब गया?
– प्रियेश मिश्र
लेकिन, 2017 में इस कहानी ने एक अप्रत्याशित मोड़ ले लिया, जिसमें कहा गया कि सात महाद्वीप वाला मॉडल हमेशा से एक गलती रही है. ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्व में एक लंबे समय से खोई हुई भूमि का टुकड़ा -जीलैंडिया की खोज ने सबको आश्चर्य में डाल दिया है. जीलैंडिया को पृथ्वी के भूले हुए आठवें महाद्वीप के रूप में भी जाना जाता है. वैज्ञानिकों ने काफी समय पहले ही इस अज्ञात दक्षिणी भूभाग की भविष्यवाणी की थी, लेकिन यह 375 वर्षों तक गायब रहा क्योंकि यह लगभग पूरी तरह से 1 से 2 किमी पानी के नीचे डूबा हुआ है लेकिन, वैज्ञानिक अब इसके रहस्यों से पर्दा उठाने लगे हैं.
किताबों से दोस्ती /
Be Friend a book
विंध्य कोकिल भैयालाल व्यास कृत प्रबंध काव्य 'सीता सत्यम" से कुछ छंद
1.
सीता तो शास्वत गाथा है विलय और सृजन की
महिमा मंडित मूरत मन की मंत्रों और भजन की
ध्यानावस्थित हो कर प्रतिपल चिंतन और मनन की
पौराणिक संदर्भ समेटे वेदों के उदयन की.
2.
जनक सुता जग जननि जानकी जनक राज की पुत्री प्यारी
इनके जनम कृत्य कौशल से तप से पूजित हो गई नारी
धरती की बेटी विधि सर्जित अर्जित सिद्धि मनौ अवतारी
गौरी गरिमा मही की महिमा सभी श्रेष्ठता की अधिकारी.
समाचार / News
22वां अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन कोलंबो श्रीलंका में संपन्न
By स्वतंत्र कौशल
पाठकीय प्रतिक्रिया / Reader's Response
प्रीता जी, मुझे यह जान कर अत्यंत प्रसन्नता हुई कि आपने एक साहित्य- संस्कृति को समेटती त्रैमासिक पत्रिका ‘पहचान’ का प्रकाशन आरंभ किया है. मैं आपको और आपके सहयोगियों को इस प्रकाशन की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाऐं भेंट करता हूं.
– महेश बिन्द्रा (पूर्व सांसद, न्यूज़ीलैंड)
पिछले तीस सालों में हमने इस दुनिया को बहुत तेज़ी से बदलते देखा है. इकोनॉमिक रिफॉर्म और वैश्वीकरण के इस दौर में जो लोग अपने देश और उसकी सांस्कृतिक जड़ों से कट गए थे, उन्होंने नए देश के अपरिचित वातावरण के साथ अपना रिश्ता कैसे बनाया होगा और उस रिश्ते का निर्वाह कैसे हुआ होगा यह जानना जितना ज़रूरी है, उतना ही दिलचस्प ये भी है कि अब इतने वर्षों बाद जब वे पीछे मुड़कर अपने देश और अपने परिचित परिवेश को देखते हैं, तो क्या महसूस करते हैं? क्या उन्हें अपनी पुरानी पहचान को बनाये रखने और एक मेजबान देश की संस्कृति से भी घनिष्ठ संबंध बनाए रखने के लिए अब एक कल्चरल रिफॉर्म की जरूरत महसूस नहीं होती होगी? मुझे लगता है “पहचान” पत्रिका कल्चरल रिफॉर्म की दिशा में पहला और बहुत सार्थक प्रयास है. हमें इस पत्रिका से बहुत उम्मीद है.
– मनोज रूपड़ा (प्रख्यात कथाकार, उपन्यासकार,भारत)
प्रीता जी की सक्रियता सदा ही चकित करती है. किसी भी काम में जुट जाना और जी जान से उसे पूर्णता तक ले जाना, उनकी लगन का प्रमाण है. पहचान के रूप में यह नया उपक्रम उनकी पहचान को पुष्ट करेगा, पूरा विश्वास है. यह ऑनलाइन पत्रिका देश विदेश के सभी हिन्दी पाठकों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी, यह आशा सहज ही की जा सकती है. साहित्य, संस्कृति और जीवन के रचनात्मक पक्षों को सामने लाने में पत्रिका सफल होगी, ऐसा मेरा मानना है. असीम शुभकामनाएं.
– माया मृग (प्रख्यात लेखक, संस्थापक बोधि प्रकाशन, भारत)
परदेश से स्वभाषा प्रेम का जीवंत प्रमाण है यह पत्रिका. अपनी राष्ट्रीय अस्मिता,संस्कृति की पहचान को बचाये रखने के लिए किसी भी को अपनी भाषा में अपनी भावोभिव्यक्ति को ही प्राथमिकता देने श्रेयस्कर है.विधा कोई भी हो,अपने कथ्य विषय में अपनी जातीय अस्मिता की पहचान कायम रखना पहला दायित्व है. इसे पढ़कर सुख,आनन्द, गर्व तुष्टि सर परिपूर्ण हूँ. देश के मध्यप्रान्त के हृदयस्थल में कर्क रेखा गमन पथ पर आबाद छोटी महानदी, जिला कटनी की एक सुदूर गंवई से में एक किसान खेतिहर, अदना सा हिंदी सेवी, सेवानिवृत्त हिदी शिक्षक, कवि कथाकार आप सभी लेखकों को हार्दिक शुभकामना प्रेषित करता हूँ.
– देवेंद्र कुमार पाठक (शिक्षक,लेखक, भारत)
पहचान ने अपने अंकों से अपने मूल नाम शब्द को सार्थक कर दिया है. ‘पहचान’ की पहचान उसके प्रकाशन के स्तर से स्थापित हो रही है.
– सोनाली त्रिपाठी (पाठिका, डालास)
“पहचान” ने हमें फिर से 70- 80 के दशक की सारिका, कादंबनी, आदि पत्रिकाओं की याद ताजा कर दी जिसमें ऐसी मन को छूती हुई क्षणिकाएं, मुक्तक, छंद पढ़ कर आनंदित होते थे. मनोरम दृश्य कवर. शुभकामनाएं, साधुवाद.
– तूलेश सितोके (पाठक,भारत)
हिंदी साहित्य के सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती अति उत्तम पत्रिका. हार्दिक शुभकामनाएं.
– बी.संजीव (पाठक, इंडोनेशिया)
यह स्वागत योग्य बात है कि इसमें सृजनात्मकता के सभी तत्वों यानी साहित्य, संस्कृति, भाषा, बोली-बानी, खान-पान आदि का समावेश है. मेरी शुभकामना है कि ‘पहचान’ पत्रिका लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों का स्पर्श करे. पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई.
– देवमणि पांडेय (बॉलीवुड के लेखक, गीतकार,भारत)